शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

चुनाव


लोकसभा विधानसभा नगरीय निकाय चुनाव पंचायत चुनाव वार्ड मेंबर के चुनाव होते है !अब तो छोटे छोटे स्तरों पर भी चुनाव होने लगे है !जैसे मोहल्ले के दस बीस घरो के बिच नेता का चुनाव ,आफिस में चुनाव,वकीलों के बिच चुनाव, डाक्टरों के बीच चुनाव, व्यापारियों के बिच चुनाव, स्कुलो व कालेजो में क्लास स्तर के चुनाव इस तरह अब चुनाव बहुत छोटे स्तरों पर संपन्न होने लगे है!
सोचिये कितना अच्छा हो की यदि घर घर में भी चुनाव होने लगे, ऐसे में क्या होगा दादा दादी जिन्हें अब तक नहीं पूछा जाता था दादा जी का चश्मा टूटे महीनो बीत चुके थे दादा जी को ठीक से दिखाई नहीं देता ऐसे में दादा जी की परेशानी को समझने वाला कोई नही था! बड़े ,मंझले और छोटे बेटे को कई बार कह चुके थे पर किसी के भी पास चश्मा बनवाने के लिए पैसा नहीं था !चुनाव आते ही दादा जी का चश्मा बन जायेगा और लाठी की वर्षो पुरानी मांग भी पूरी हो जाएगी !दादा दादी को अच्छे अच्छे पकवान खाने को मिलेंगे और हा दादी जी का दांतों का सेट भी अब बन जायेगा !बड़े मंझले या छोटे बेटे में से किसी एक को चुनाव जो जितना था !ऐसे में बच्चो की भी नीकल पड़ी थी पाकिट मनी जो बढ़ने वाली थी बेटी को स्कूटर और बेटे को नई बाइक भी दिलाने का वादा था और तो और घर के एक प्रत्यासी ने जितने पर बच्चो को नया मोबाईल सेट ब्लूटूथ व केमरा वाला दिलाने का वादा किया था !परन्तु हा वादा लिया था की बेशकीमती वोट उन्हें ही मिलना चाहिए !पुरे घर की फिजा ही बदल गई थी !मंझली बहु जो की थोड़े गरीब घर से आई थी को घर के सभी सदस्यों द्वारा पर्याप्त सम्मान देने की बात कही जाने लगी !
वास्तव में चुनाव होते रहने चाहिए जितने के बाद भले ही नेता गायब हो जाते है परन्तु चुनाव के दौरान तो नजर आते है !और इतना कुछ दे जाते है की पांच साल तक मांगने की आवश्यकता नहीं पड़ती और ऐसे में यदि घरो में भी चुनाव होने लगे तो घर की भी छोटी बड़ी समस्या कुछ समय के लिए ही सही हल तो होगी और बड़े बुढो व बच्चो को पर्याप्त मान सम्मान भी मिलेगा व पूछ परख बढ़ेगी !

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

अजी सुनते हो ...............

अक्सर ये शब्द हमने अपने घरो में सुना है वे जिनकी शादी हो चुकी है या जो विवाह की दहलीज पर खड़े है ऐसे प्यार भरे लुभावने शब्द मन को गुदगुदाते है! जैसे की अजी सुनते हो,मुन्ने के पापा,जरा सुनियेगा इसी तरह पति का पत्नी के लिए संबोधन अरी ओ भागवान,करमा वालिये ये प्यार की मिठास लिए शब्द पति पत्नी के दैनिक दिनचर्या में हुई थकावट को गायब कर देते है!परन्तु वर्तमान परिवेश में आधुनिकता का समावेश लिए परिवारों में पति पत्निया इन शब्दों को भूलते जा रहे है! अब पति तो पति, पत्निया भी अपने पति को उसके नाम से संबोधित करती है! रिश्ते की बनावट और बुनावट किस पर निर्भर करती है! जाने कितने ही जरुरी गुणों की मौजूदगी का बखान कर दिया जाता है! इस सवाल के जवाब में लेकिन सही मायने में इसके लिए दो ही स्थितिया आवश्यक है! पहली रिश्ता निभाने का विचार और दूसरी संवाद निभाने वाली सोच हर नाते का पहला कदम है! अब शादी को लीजिये कैसे बुना जाय यह रिश्ता की ताने बाने बराबर टिके रहे! जिनकी शादी को 20 - 25 साल हो गये ऐसे लोगो से बातचीत करके विवाह काउंसलर इस नतीजे पर पहुचे है की विश्वास ही वह जादू है जो रिश्तो को बंधे रखता है! यह विश्वास ही है जो निभाने वाली सोच का आधार बनता है! लोग कहते मिलेंगे की बात तो समर्पण की है! समर्पण का यह अभिप्राय कदापि नहीं है की हम अपने आपको किसी को समर्पित कर दे! हम आपको बता दे की निभाने के विचार का ही दूसरा नाम समर्पण है जो विश्वास से जुड़ा है!दूसरी बात थी संवाद, संवाद की अहमियत इतनी ज्यादा होती है की इसे समझना बहुत ही आवश्यक है! खास कर सफल वैवाहिक जीवन के लिए, लेकिन यहाँ यह बताना जरुरी होगा की हम बातचीत करने की बात नहीं कर रहे! बातचीत और संवाद में बहुत अंतर है बच्चे के स्कूल की बाते,आर्थिक चर्चा,नौकरी या नौकरों के नखरे,मित्रो रिश्तेदारों की बाते,आफिस या कार्यक्षेत्र की सफलता या कठिनाइयों का अदान प्रदान सचमुच केवल बाते है, संवाद नहीं! बात करना एक तरफ़ा है और संवाद दो तरफ़ा! संवाद सुनने के लिए प्रेरित करता है जब आप सुनते है तब दुसरे को जानते है! ध्यान से सुनने के लिए अपने काम छोड़ देते है, पुरे गौर से सुनकर प्रतिक्रिया देते है, तो सामने वाले का सम्मान करते है! उसकी राय उसके सपनो उसकी सोच को स्वीकारते है! और जब ऐसा होता है तो साथी को जीवन में शामिल किये जाने का यकीन रहता है! संवाद के लिए संही माहौल आज के शोर में पाना यु भी मुश्किल है! कभी कभी अचानक साथ घुमने चले जाने का प्रोग्राम तथा रोज एक साथ भोजन करने के आलावा तीन तरीके है जो आधुनिक समय में संवाद के रास्ते को साफ़ बनाये रखते  है !
1 पति पत्नी घर में खुद को मिडिया स्रोतों से दूर रखे कम से कम कुछ देर के लिए! इसका मतलब है की टी.वी.,कंप्यूटर,मोबाईल म्यूजिक सिस्टम सब से दूर रखे! कोशिश करे की इस माहौल में रोज आधा घंटा बिताये कुछ ही दिनों में आपसी संवाद कितना बेहतर हो जायेगा आप खुद ही देख लीजियेगा !
2 एक साँझा डायरी बनाये जिसमे शुरुआत में अपने अगले दिन के कार्यक्रम के बारे में लिखे! इसमें कोई गलतफहमी नहीं रहेगी धीरे धीरे इसमें अपने सपनो, साथी के लिए भावी योजनाये और मनोभाव भी लिखे जा सकते है! इसमें हर रोज लिखना ही है यह नियम दोनों निभाए! कई लोग कहने से ज्यादा लिखा बेहतर समझते है ऐसे में यह डायरी बहुत ज्यादा फायदेमंद होगी !
3 रात सोने से पहले साथ मिलकर प्रार्थना या दुआ करे! जब दुआए साझी होती है तो जिन्दगिया अलग नहीं हो सकती और जिससे आप नाराज होंगे उसके साथ प्रार्थना नहीं कर सकेंगे! लिहाजा प्रार्थना करते ही गुस्सा छू मंतर हो जायेगा !