मंगलवार, 27 सितंबर 2011

भगत सिंह ............


  • आज ही के दिन एक सौ चार वर्ष पूर्व पहले अविभाजित हिंदुस्तान के लायलपुर जिले बंगा (जो की अब पाकिस्तान में है) की भूमि पर ऐसी सख्शियत ने जन्म लिया था, जो इस दुनिया में महज 23 वर्ष 5 माह 27 दिन रहने के बाद अपने वतन की आजादी के लिए गर्व से फांसी पर हसते हसते झूल गए और जो इस दृश्य को देखने के लिए मजबूर थे, वे रो पड़े ..इस अमर शहीद को सारी दुनिया में भगत सिंह के नाम से जाना जाता है.. भगत सिंह उल्का पिंड की तरह भारतीय क्षितिज पर अवतरित हुए थे ..अपनी शहादत से पहले वे हर देशवासी के मन में चेतना और आकंछाओ के प्रतीक बन चुके थे .उन्होंने लोगो को ये बताया की शोषण और जुल्म करने वालो में देशी और विदेशी का अंतर बेमानी होता है ..आज अंग्रेज नहीं है लेकिन देश में लुटेरे है जो देश को लुट रहे है..भगत सिंह ने देश से प्रेम किया समाज को बदलना चाहा घर परिवार को समाज का अंग जानकर समाज आजाद और बेहतर बनाना चाहा ..ये युवा मन का आत्मस्वाभिमान ही तो था .. इस देश की आजादी के लिए अंग्रेजो के मन में भय पैदा किया तो इसी महानायक की शेर दिली थी जिसने 8 अप्रेल 1929 को सेन्ट्रल असेम्बली में धमाका कर अंग्रेजो सहित अंग्रेजो की खिलाफत करने वाले हर देश को ये सन्देश दिया था की अंग्रेजो के हौसले भी पस्त किये जा सकते है, बशर्ते धमाका करने के लिए एकता और साहस हो ..उस घटना का जिक्र भी जरूरी है जिसके चलते वे और भी मजबूत होकर अंग्रेजो के खिलाफ खड़े होने का साहस करते गए. अस्सेम्बली मे बम धमाके के बाद भगत सिंह चाहते तो वहा से भाग सकते थे पर उन्होंने सबके सामने इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय का उदघोष करते हुए अपनी गिरफ्तारी दी. जेल मे रहने के दौरान भगत सिंह के सब्र और साहस के साथ साथ आत्म आंकलन का भी कड़ा परिक्षण हुआ अंग्रेजो ने इस दौरान भगत सिंह और उनके साथियो को तरह तरह के प्रलोभन भी दिए और जब वे नहीं माने तब मानवता की सारी सीमायें लांघते हुए उन्हें बहुत बुरी तरह से प्रताड़ित किया लेकिन वह भगत सिंह थे जिनका शारीर और आत्मा दोनों फौलाद के बने थे जो अंग्रेजो के कठोर से कठोर यातनाओं के सामने नहीं टूटे इस दौरान भगत सिंह ने जेल मे कैदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को भी देखा जानवरों से भी बदतर दिए जाने वाले भोजन के विरोध मे उन्होंने अपने साथियो के साथ अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल कर दी जो लगातार 117 दिन चली और आखिर क़र इस भूख हड़ताल के सामने ब्रिटिश शासन को झुकना पड़ा और इस आजादी के मतवाले की जीत हुई --------भगत सिंह की बदती लोकप्रियता से अंग्रेजी हुकूमत घबराने लगी और उन्हें जब लगने लगा भगत सिंह झुकने वालो मे से नहीं है और ज्यादा दिन तक उन्हें जेल मे रखना अंग्रेजी हुकूमत के लिए खतरनाक साबित हो सकता था तो उन्होंने एकतरफा निर्णय करते भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च 1931 को फांसी दिए जाने की सजा सुना दी. भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी को लेकर जहा देश भर मे विरोध प्रदर्शन हुए वही महात्मा गाँधी पर भी भगत सिंह को न बचाने के आरोप लगे इतिहासकार लिखते है की अगर उन दिनों महात्मा गांधी चाहते तो भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की फांसी की सजा रोकी जा सकती थी -------- अंग्रेजी हुकूमत शंकित थी की कही फांसी वाले दिन देश मे किसी तरह अप्रिय स्थिति न हो जिससे अंग्रेजी हुकूमत डर गयी और उन्होंने 23 मार्च की रात्रि को ही गुपचुप तरीके से भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी.
  • भगत सिंह की शहादत वर्तमान परिवेश मे प्रासंगिक है आज देश मे भ्रष्टाचार, आंतकवाद, नक्सलवाद और अलगाववाद अपनी जड़े जमा चूका है राजनेताओं का नैतिक चरित्र लगभग समाप्त सा हो चूका है केंद्र मे जो सरकार है उसके बहुत से मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप मे जेलों मे बंद है और बहुत से ऐसे है जो अभी कतार मे है आम जनता की परेशानियों से सरकार को जैसे कोई लेना देना ही न हो ,हमारी विदश नीति कमजोर है भगत सिंह ने जिस आत्म स्वाभिमान की लड़ाई लड़ी वह इन नेताओ ने भुला दी है ऐसे मे भगत सिंह के आदर्शो पर चल कर यदि राज नेता और आम नागरिक कुछ सबक लेते है तो सच्चे मन से ऐसा राष्ट्र भक्त को हम सभी की ओर श्रद्धा सुमन अर्पित है ............................... ऐसे वीर सपूत को नमन है