बुधवार, 11 दिसंबर 2024

विचारणीय घटना..बेंगलुरु की घटना किस तरह तारीख पे तारीख और परिवार टूटने पर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते व्यक्ति पीस जाता है उसका जीवित उदाहरण है यह घटना वकालत प्रोफेशन के दौरान मैने बहुत करीब से इसे देखा समझा और महसूस किया की कैसे दो परिवारों में आई दरार बड़ा रूप ले लेती है, आजकल बहुत तेजी से पति पत्नी में आपसी मन मुटाव पैदा होने लगे है लेकिन इस मन मुटाव के बीच जब परिजन की दखल आरंभ होती है और फिर उसके बाद वकील की इंट्री होती है तब पूरा दृश्य ही बदल जाता है कानून में दोनों पक्षकारों में सबसे ज्यादा अधिकार महिला को मिले है लेकिन जब इन अधिकारों का दुरपयोग होता है तब स्थिति बनती कम बिगड़ती ज्यादा है, कभी न्यायालय जाए तो फैमली कोर्ट के बाहर का नजारा कुछ घंटे बैठकर देखे कैसे कभी साथ जीवन बिताने की कसम खाने वाले दूर दूर बैठे एक दूसरे की तरफ न देखने की कसम खाए बैठे दिखेंगे और इन सबके बीच छोटे बच्चे हसरत भरी नजर से अपने पिता की ओर देखते दिखेंगे जो चाहकर भी पिता से मिल नहीं सकतेयह घटना एक सबक है परिवार टूटने से बचे या फिर अलगाव ही हो तो कानूनन समय लंबा न खींचे ज्यादा लंबा समय व्यक्ति को दोनों पक्ष को तोड़ देता है दोनों अलग हुए परिवार भले अलग अलग ही हो जाए लेकिन अपनी जिंदगी नए सिरे से चालू कर सके..