कोई पुस्तैनी जागीर बन बैठा है दूर संचार के तारो को !
कोई हसी मजाक समझ रहा है सुप्रीम कोर्ट की फटकारो को !!
कोई तेलों का दाम बढाकर रिश्वत खोरी करता है !
कोई पी.एम. के आफिस में ही इसरो की चोरी करता है !!
कोई बाट रहा है मयखानों में सड़ाकर अनाज के दानो को !
अफ़सोस ......यही हो रहा है.....
जवाब देंहटाएंकौन भेजेगा इन्हें जेल ? यही तो हाकिम बने बैठे हैं ...आक्रोश को दिखती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सटीक आक्रोश...
जवाब देंहटाएंbahut khub janab
जवाब देंहटाएंi agree with you